45 हजार कर्मचारियों ने 12 लाख लोगों की जान बचाई, तूफान को धूल चटाई!

नई दिल्ली। दुनिया भर में कर्मचारियों से संगठित प्रयास की सफलता का यह सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। भारत के तटीय इलाकों में आए भयंकर तूफान में कोई जनहानि नहीं हुई। 45 हजार कर्मचारियों ने 250 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से आए तूफान को धूल चटा दी। जहां लाशों के ढेर लग जाने चाहिए थे वहां सिर्फ कचरा पड़ा हुआ है जिसे साफ किया जा रहा है। फानी नाम का चक्रवाती तूफान अब बांग्लादेश की तरफ चला गया है। 

सिर्फ 12 लोग मारे गए, वो भी गलती से

ओडिशा में 12 लोग मारे गए हैं। 20 साल पहले यानी 1999 में इसी तरह का सुपर साइक्लोन ओडिशा से टकराया था। तब करीब 10 हजार लोग इस आपदा का शिकार बने थे। देश भर में त्राहि त्राहि मच गई थी। दुनिया भर से राहत भेजी जा रही थी। महीनों तक स्थिति सामान्य नहीं हो पाई थी लेकिन इस बार क्षति ना के बराबर हुई है। केवल ऐसी सरकारी एवं प्राइवेट संपत्तियों को नुक्सान हुआ है जिन्हे तबाह होने के लिए छोड़ दिया गया है। सरकार कर्मचारियों ने तूफान आने से पहले दिन रात मेहनत करके ना केवल 12 लाख लोगों की जिंदगियों को सुरक्षित किया बल्कि उनके जमाधन और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज इत्यादि को भी सुरक्षित रखा। जल्द हीसबकुछ सामान्य हो जाएगा। कुल 26 लाख मैसेज कर तमाम जानकारियां दी गईं। इसके अलावा 45 हजार 

कर्मचारियों और वॉलंटियर्स ने जमीनी स्तर पर काम किया। 

कर्मचारी डटे रहे, लोगों को शिविर में भेज दिया

ओडिशा और केंद्र सरकार के तमाम संबंधित विभाग फैनी से निपटने के लिए तैयार थे। करीब 10 लाख लोगों पर इसका असर होता। आपदा प्रबंधन के 1 हजार प्रशिक्षित कर्मचारी खतरे की आशंका वाली जगहों पर भेजे गए। 300 हाईपावर बोट हर पल तैनात रहीं। टीवी, कोस्टल साइरन और पुलिस के अलावा हर उस साधन का उपयोग किया गया जो आमजन की सुरक्षा के लिए जरूरी था। इसके लिए उड़िया भाषा का ही इस्तेमाल किया गया। संदेश साफ था- तूफान आ रहा है, शिविरों में शरण लें।  

 

दुनिया ने माना सबसे बड़ी कामयाबी

अमेरिकी मीडिया भी मान रहा है कि भारत ने एक बहुत बड़ी आपदा का सामना पूरी सफलता से किया। इसके लिए सही रणनीति अपनाई गई, उपयुक्त और आधुनिक संसाधनों का इस्तेमाल किया गया। यही वजह है कि करीब 10 लाख लोगों को सुरक्षित रखा जा सका। ओडिशा और केंद्र सरकार ने मिलकर काफी पहले से इसकी तैयारी की थी। 1999 के बाद से ही ओडिशा में हजारों शेल्टर होम बनाए गए थे। मौसम विभाग के चार सेंटर तूफान की हर हरकत पर न सिर्फ पैनी नजर रख रहे थे बल्कि उसके हिसाब से अपनी योजना भी तैयार कर रहे थे। 

तकनीक का सही इस्तेमाल किया गया

आपदा प्रबंधन में देश के कुछ खास तकनीकी संस्थानों की मदद ली गई। इनमें आईआईटी खड़गपुर का नाम अहम है। मौसम विभाग के वैज्ञानिकों ने समझ लिया था कि बंगाल की खाड़ी के गरम पानी से तूफान का असर ज्यादा होगा। लिहाजा, तैयारियों का स्तर बेहतर रखा गया। ओडिशा गरीब राज्य है। इसलिए संसाधनों का इस्तेमाल समझदारी से किया गया। एनडीआरएफ की टीमों को काफी पहले संबंधित क्षेत्रों में पहुंचा दिया गया था। मछुआरों से संपर्क कर उन्हें तमाम हिदायतें दी गईं थीं। लकड़ी की नावों को किनारों पर सुरक्षित पहुंचा दिया गया था। बुजुर्ग, बच्चों और महिलाओं को शिविरों में सबसे पहले पहुंचाया गया।