1000 रुपए उधार लिए थे, 10 साल तक बंधुआ रहा!

नई दिल्ली। तमिलनाडु के वेल्‍लोर और कांचीपुरम जिले से बड़ी खबर आ रही है। यहां प्रशासनिक टीम ने 13 परिवारों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया है। प्रशासनिक टीम के लिए यह गर्व की बात है परंतु मुक्त हुए मजदूरों की कहानियां समाज को शर्मसार करतीं हैं। 70 साल के बुजुर्ग काशी नटराज 10 साल से बंधुआ था, क्योंकि वो महज 1000 रुपए का कर्ज नहीं चुका पाया था। 

 

बंधक बनाए लगभग 42 लोग थे जिनमें 16 बच्‍चे भी शामिल थे। ये लोग पिछले पांच साल से इन दोनों जिलों के अलग-अलग हिस्‍सों में लकड़ी के कारखानों में काम कर रहे थे। कांचीपुरम के ओलुंगावाड़ी के नटराज और उसके रिश्‍तेदारों ने इन लोगों को बंधुआ बना रखा था। ये बंधुआ मजदूर न कहीं आ सकते थे न जा सकते थे, और न ही इनके बच्‍चे स्‍कूल जाने को आजाद थे। एक खुफिया जानकारी के आधार पर ए सर्वनन (सब कलेक्‍टर कांचीपुरम) और इलमभवथ (सब कलेकटर रानीपेट) ने एक ही समय पर इन दोनों ठिकानों पर छापे मारकर इन लोगों को आजाद करा दिया। 

 

इस बचाव अभियान में हिस्‍सा लेने वाले एक अधिकारी ने बताया, 'चूंकि बंधक बनाने वाले लोग आपस में रिश्‍तेदार थे इसलिए अधिकारियों ने अपने-अपने क्षेत्र में सुबह 9:30 बजे ये छापे मारे ताकि उन्‍हें इससे पहले भनक न लगे और वे सतर्क हो जाएं।' 

 

70 साल के बुजुर्ग भी बंधुआ मजदूर थे 

बचाए गए बंधुआ मजदूरों के असोसिएशन के गोपी ने बताया, 'अधिकारियों को देखकर लगभग 70 साल के काशी उनके पैरों पर गिर पड़े और खुद को व दूसरे लोगों को यहां से रिहा कराने की भीख मांगने लगे।' गोपी ने ही बंधुआ मजूदरों के बारे में अधिकारियों को खबर दी थी। इस बचाव अभियान के समय वह अधिकारियों के साथ बने रहे। 

महज एक हजार रुपये लिए थे उधार 

काशी के साथ यहां से 27 अन्‍य लोगों को छुड़ाया गया। इनमें आठ परिवारों के 10 बच्‍चे भी थे। ये सभी कांचीपुरम जिले के कोन्‍नेरीकुप्‍पम गांव में लकड़ी काटने की एक इकाई में काम कर रहे थे। बुजुर्ग काशी नटराज के यहां एक दशक से भी ज्‍यादा समय से बंधुआ मजदूरी कर रहे थे। उन्‍होंने नटराज से महज एक हजार रुपये उधार लिया था। 

 

रानीपेट के सब कलेक्‍टर इलंभवथ की अगुआई वाली टीम ने 14 लोगों को छुड़ाया था। इनमें पांच परिवरों के छह बच्‍चे भी शामिल थे। ये लोग वेल्‍लोर जिले के नेमिली तालुक के परुवामेदु गांव में लकड़ी के कारखाने में काम कर रहे थे। 

 

शुरुआती पूछताछ से पता चला है कि इन बंधुआ मजदूरों ने 9 हजार से 25 हजार रुपये तक का उधार लिया था। उसे चुकाने के लिए ही ये पिछले कई वर्षों से यहां बंधुआ मजदूरी कर रहे थे। काशी ही एकमात्र अपवाद थे जो महज एक हजार रुपये के लिए यहां रखे गए थे।