भौतिक पदार्थों के प्रति आसक्ति को छोड़ो, वैराग्य सागर जी महाराज ने दिगम्बर जैन समाज मंदिर प्रवचन धर्म सभा में कहा,


नीमच 27 सितंबर  (केबीसी न्यूज़) हमें मनुष्य जीवन भौतिक सुख सुविधाओं में बर्बाद करने के लिए नहीं मिला है हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है हमें तय करना है ।मानव जीवन का सबसे प्रमुख लक्ष्य आत्मक सुख अर्थात मोक्ष को प्राप्त करना होना चाहिए। मोक्ष प्राप्ति के लक्ष्य के लिए जो भी आवश्यक होगा करना चाहिए।यह बात वैराग्य सागर जी महाराज साहब ने कही।वे पार्श्वनाथ दिगंबर जैन समाज नीमच द्वारा दिगम्बर जैन  मंदिर सभागार में परम पूज्य चक्रवर्ती 108 शांति सागर जी महामुनि राज के पदारोहण शताब्दी वर्ष एवं उपलक्ष्य में  आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे ।उन्होंने कहा कि मानव जीवन में हमारा लक्ष्य भौतिक साधनों धन संपत्ति अर्जित करने का नहीं होना चाहिए।50 वर्ष की आयु के बाद मानव की  धन संपत्ति का  अधिकार बच्चों का हो जाता है। मनुष्य को सरलता पूर्वक धन संपत्ति अपने बच्चों को सौंप देना चाहिए और उनका कर्तव्य पूरा करने के लिए स्वयं के विवेक पर छोड़ देना चाहिए। धर्मशास्त्रभी हमें परिग्रह के त्याग का संदेश देता है। संसार में यदि हम भौतिक पदार्थों के प्रति राग द्वेष करते रहेंगे तो अपने शरीर की देखभाल भी नहीं कर पाएंगे। पुण्य कर्म उदय में रहेगा तब तक शरीर स्वस्थ रहेगा। अन्यथा यह शरीर भी रोगी हो जाएगा।दिगंबर जैन चातुर्मास समिति सचिव अजय कासलीवाल , मीडिया प्रभारी अमन विनायका ने बताया कि आगम पर्व के उपलक्ष्य में एकाग्रता, संस्कार, विधि तप उपवास की विधि और सावधानियां   सहित विभिन्न धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर मार्गदर्शन प्रदान किया।मुनि  सुप्रभ सागर जी मसा ने कहा कि मनुष्य को 12 भावना का चिंतन कर अमृत ज्ञान ग्रहण कर मन की तृष्णा का त्याग करना चाहिए। त्यागी भावना को नहीं अपनाएंगे तो समय आने पर शरीर रोगी हो जाएगा और डॉक्टर त्याग करवाते हैं। पदार्थ के स्वाद को छोड़ेंगे तभी आत्म कल्याण का मार्ग मिल सकता है। पदार्थ की भूख का त्याग करना होगा और आत्मा के कल्याण की भूख को जागृत करना होगा तभी आत्म कल्याण का मार्ग मिल सकता है। संसार में कभी भी  एक पशु दूसरे पशु को नहीं मारता है। राजाओं ने अपने राज्य को बढ़ाने के लिए हजारों लोगों को युद्ध में मरवा दिया था और अपना पाप कर्म बढ़ा लिया था इस पाप कर्म की सजा उस राजा को जन्मों तक मिलती रहेगी क्योंकि यह पाप कर्म सदैव उसके साथ रहेगा। इसलिए हमें धन संपत्ति के लिए परिवार पड़ोसी या किसी से भी विवाद लड़ाई झगड़ा नहीं करना चाहिए नहीं तो हमारा पाप कर्म भी बढ़ता है और हम भी पाप के भागीदार बन सकते हैं। धार्मिक नैतिक अच्छी बातों को सदैव ग्रहण करना चाहिए जिस प्रकार हंस मोती चुगता है उसी प्रकार गुरु की वाणी को हमें ग्रहण करना चाहिए और अपने जीवन के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए ।मनुष्य 24 घंटे खाने-पीने में लगा रहता है लेकिन वह अपनी आत्मा के कल्याण के लिए समय नहीं दे पता है चिंतन का विषय है।
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