3 से 4 साल के उम्र में ही बच्चों के अंदर आ जाता है आत्मसम्मान का भाव, सबके सामने डांटने से बचें!

बचपन में कुछ बच्चों का स्वभाव बहुत ही चिड़चिड़ा होता है। इस कारण वो पूरे दिन रोते-चीखते रहते हैं और हर बात पर गुस्सा जाहिर करने लगते हैं। ऐसे बच्चों को संभालना थोड़ा मुश्किल होता है। कई बार माता-पिता झल्लाहट में बच्चों को मारने-पीटने भी लगते हैं। अगर आपके भी बच्चे बहुत ज्यादा गुस्सा करते हैं या फिर रोते रहते हैं तो आप उनको मारे नहीं बल्कि समझाने का प्रयास करें। अगर बच्चों को चिड़चिड़ापन से बचाना है तो इन बातों का जरुर ध्यान। 

उन्हें मारे नहीं
अगर बच्चे के रोने, चिल्लाने पर आप उसे मारते हैं तो बच्चों के अदर गुस्सा आना जाहिर सी बात है। लगातार मारने-पीटने पर बच्चों के अंदर गुस्सा घर कर जाता है। जो धीरे-धीरे चिड़चिड़ेपन में बदल जाता है। इसलिए बच्चों को कभी मारे नहीं। अगर बच्चा परेशा कर रहा है तो उसकी बात सुनें और उनी परेशानी दूर करने की कोशिश करें। 

बेइज्जत न करें
कई बार बच्चों द्वारा गलती करने पर मां-बाप उन्हें समजाने के बजाए दूसरों के सामने उनपर डांटने-चिल्लाने लगते हैं। सामान्य तौर तीन-चार साल की उम्र तक बच्चों के मन में आत्मसम्मान की भावना जागृत हो जाती है। ऐसे में अगर मां-बाप दूसरों के सामने डांटते हैं तो बच्चों के दिल को ठेस पहुंचता है और बदले की भावना उनके मन में घर कर जाती है। ऐसे बच्चे स्वभाव से चिड़चिड़े हो जाते हैं। इसलिए अगर बच्चों को कोई चीज समझानी हो तो उन्हें अकेले में समझाएं। 

भूख के कारण आता है गुस्सा
भूख लगने पर शिशुओं में चिड़चिड़ेपन का स्वभाव देखा जाता है। इसलिए छोटा बच्चा अगर बिना किसी कारण का रो रहा है तो और बहुत प्रयास के बाद भी चुप नहीं हो रहा है तो उसे दूध पिलाएं। छोटे बच्चे इशारों से अपनी बात कहते हैं । माता-पिता धीरे-धीरे जब ये इशारे समझने लगते हैं तो उन्हें परेशानी नहीं होती है। 

हार्मोनल असंतुलन के कारण भी चिड़चिड़ापन
हार्मोनल असंतुलन के कारण बच्चों में चिड़चिड़ेपन का कारण हो सकता है।  टीनएजर्स में बहुत हाई लेवल की एनर्जी होती है पर आधुनिक जीवनशैली से आउटडोर गेम्स और फिजिकल एक्टिविटीज़ गायब होती जा रही हैं। ऐसे में बच्चे को अपनी एनर्जी रिलीज़ करने का मौका नहीं मिलता तो इसका असर गुस्से या आक्रामक व्यवहार के रूप में नज़र आता है।