कारसेवा में शहर के पं.राधेश्याम उपाध्याय भी पहुंचे थे निरीह साधुओं को पैरों में बेडियां डाल जकडा गया था


मुगलिया सल्तनत का कहर, अंग्रेजी हुकूमत का दमनचक्र और आपातकाल की दरिंदगी भी मुलायमसिंह यादव की क्रूरतम सरकार के पत्थर दिल कारनामे के सामने बौनी हो गई थी। यह बात श्रीराम की अर्चना के लिए अयोध्या जाने वाले साधुओं पर ढाये गये जुल्मों ने साबित कर दी थी। राजस्थान के बूंदी से अयोध्या जा रहे दुर्बल काया वाले निरीह साधु रामनाथदास और उनके साथियों को बेदर्द पुलिस ने इटावा स्टेशन पर जबरन उतारा और जिला कारागार के सींखचों में ठूंस दिया। उन्हें यहां भूखा प्यासा रखा गया और जब वे यातनाओं से थककर मरणासन्न हो गए तो उन्हें इलाज का नाटक करने के लिए खतरनाक कैदी की तरह लोहे की बेडियों में जकडकर उर्सला अस्पताल की रोग शैया पर पटक दिया गया। पुलिस की अमानवीय और बर्बर फायरिंग के बाद रामभक्तों के शव यहां वहां सडते देखे गए। यह वाकया जिसने भी देखा तो भगवान राम के लिए हमारे संतों का वह त्याग और समर्पण देख हर कोई दंग रह गया। संतों के उस त्याग व समर्पण को न्याय मिला और रामलला विराजेंगे। यह घटना 1990 में नीमच से कारसेवा के समय पहुंचे कारसेवक एवं कर्मकाण्डीय विप्र परिषद नीमच के अध्यक्ष पं.राधेष्याम उपाध्याय ने बताई। उस समय कारसेवकों ने बडी यातनाएं सहीं, लेकिन हर किसी के मन में श्रीराम के प्रति आस्था का भाव था। उन्होंने बताया कि कारसेवा में कारसेवक के रूप में सम्मिलित होना जीवन का महत्वपूर्ण क्षण था। रामजन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन में 1528 से 1992 तक 76 बार युद्ध लडे गए थे। इनमें लाखों ने बलिदान दिया। रामभक्तों की आस्था का केन्द्र मुक्त हुआ और अब मंदिर बनकर तैयार हो गया। ऐसे में 22 जनवरी का अब बेसब्री से इंतजार है।पटरी पर चल रहे थे, मालगाडी रूकी, हम कोयले की बोगी में बैठे*पं.उपाध्याय ने कारसेवा के बारे में बताया कि 23 अक्टूबर 1990 को नीमच से बस द्वारा रामपुरा भानपुरा होते हुए झालावाड रोड पहुंचे और सैंकडों की संख्या में कारसेवक अवध एक्सप्रेस में सवार हुए थे जो उत्तरप्रदेष की सीमा से पहले रूपावास उतरे। ग्रामीणों ने कारसेवकों को भोजन करवाया। यहां से सभी रेल पटरियों से होते हुए आगे बढे। हम पटरी पर चल रहे थे कि तभी एक मालगाडी स्वतः ही रूक गई। हम सभी मालगाडी की बोगी में बैठ गए। इस तरह सभी कारसेवक कोयले की खाली बोगी में बेठे और फतेहपुर सीकरी से पहले मालगाडी के ड्रायवर ने गाडी रोकी और हम सभी कारसेवकों को उतार दिया। सभी कारसेवक पैदल पैदल पगडंडियों से होते हुए आगे बढने लगे लेकिन सरकार के आदेश पर पुलिस ने कारसेवकों को वोदला से कानपुर के लिए बस में बैठे, आगे छलेसर चौकी पर गिरफ्तार कर लिया। रात को एत्मादपुर थाने पर ले जाया गया। सुबह सभी गिरफ्तार कारसेवकों को आगरा सेन्ट्रल जेल के लिए ट्रांसफर किया गया। आगरा सेन्ट्रल जेल में ले जाकर बंद कर दिया। यहां 1500 से ज्यादा कारसेवक रखे गए थे।
आगरा सेन्ट्रल जेल में निरूद्ध रहने के दौरान ही कारसेवकों के साथ मिलकर जेल में ही 30 अक्टूबर को प्रातः 9.44 पर यहां पर हवन हुआ, जेल में ही नवीन मंदिर की स्थापना हुई, जिसमें जेल में निरूद्ध सभी कारसेवकों मिट्टी, ईंट जुटाकर मंदिर बनाया। मूर्तियां बाहर से आईं। मंदिर स्थापना मेरे आचार्यत्व में सम्पन्न हुई। आगरा के मेयर रमेशकांत लवानिया व आगरा विधायक श्री किशनगोपाल जाटव ने सपत्निक भाग लिया। इस अवसर पर लगभग 2500 लोगों ने यज्ञ में भाग लिया। महिलाओं सहित कई महात्मा भी थे। मुख्य यजमान जमनादास सोनी बने। 4 नवम्बर को केंद्रीय कारागार आगरा से मुझे रिहा किया गया।